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आते-जाते तो नित्य रहे,
सबने जाना स्कूल गए।
हाजरी बनी पर मन न बना,
बच्चों को सिखाना भूल गए।
अपनी गरिमा न जान सके,
खुद कैसे राष्ट्र निर्माता हैं।
आजीवन हो जो आभारी,
उनके ही भाग्य विधाता हैं।
औरों की निष्ठा देख रहे,
खुद भी उनके अनुकूल गए।
हाजरी बनी पर मन न बना,
बच्चों को सिखाना भूल गए।
सब भूल चुके हैं उस पल को,
कितने पापड़ बेले होंगे।
कब मिले नौकरी मुझको भी,
अनगिनत दुःख झेले होंगे।
कितना है कौन निक्कमा अब,
लड़ने में ही अब तूल गए।
हाजरी बनी पर मन न बना,
बच्चों को सिखाना भूल गए।
आपस में जब भी मिले कभी,
होती चर्चा बस वेतन की।
गुरु पद की मर्यादा न रही,
बस ध्यान रखा ऊपरी धन का।
जग भ्रष्टाचार में डूब रहा,
खुद को भी बचाना भूल गए।
हाजरी बनी पर मन न बना,
बच्चों को सिखाना भूल गए।
#बिनोद कुमार ‘हंसौड़ा’
परिचय : बिनोद कुमार ‘हंसौड़ा’ का जन्म १९६९ का है। आप दरभंगा (बिहार)में प्रधान शिक्षक हैं। शैक्षिक योग्यता दोहरा एमए(इतिहास एवं शिक्षा)सहित बीटी,बीएड और प्रभाकर (संगीत)है। आपके नाम-बंटवारा (नाटक),तिरंगा झुकने नहीं देंगे, व्यवहार चालीसा और मेरी सांसें तेरा जीवन आदि पुस्तकें हैं। आपको राष्ट्रभाषा गौरव(मानद उपाधि, इलाहाबाद)सहित महाकवि विद्यापति साहित्य शिखर सम्मान (मानद उपाधि) और बेहतरीन शिक्षक हेतु स्वर्ण पदक सम्मान भी मिला है। साथ ही अनेक मंचो से भी सम्मानित हो चुके हैं
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Wed Jul 19 , 2017
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