
वाह री किस्मत क्या गजब का कहर ढाया हैं |
आस्तीन के सांपो ने विषलहरों में मुझे बहाया है ||
पुस्तकों मे ज्ञान खोजने पूरा जीवन खपाया हैं |
पर सच्चा ज्ञान तो आज मुझे अपनों ने सिखाया है ||
स्वार्थ के इस अंधकार में अपनापन को मेंने खोया है |
पर स्वजनों ने घात करके बीज पाप का बोया हैं ||
दुनियादारी की चापलूसी ने मुझे नई सीख सिखाई हैं |
बहुत नाज था बल बुद्धि पे आज फिर ठोकर खाई है ||
उम्मीद नहीं थी जिसकी मुझे आज वो घाव झैला है |
आज एक अपना अपनों की ही नजरों में मैला है ||
अब तो इस दुनिया में कुछ अपने भी बेगाने लगते हैं|
मगर कुछ परायो से भी मुझे अपनापन सा लगता है ||
विषाद ग्रस्त हृदय में आज वेदना का सागर उमड़ पड़ा|
कुछ पलों का साथ निभा जो परछाई बन साथ खड़ा||
हाय! आज उस यार बिना क्यों ये जग सुनसान पडा़|
दुनिया के इस भ्रमजाल में फँसा आज तेरा मीत खड़ा|
इंतज़ार…….