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बेशक शब्दों में चिंगारी रखो
लेकिन अच्छे लोगों से यारी रखो
कवि हो तुम कवि धर्म तुम्हारा
निष्पक्ष अपनी कलमकारी रखो
कहते हैं आईने हो तुम समाज के
बेशक लेखन अपना जारी रखो
कहते हो गर कलमकार खुद को
कलम के प्रति वफ़ादारी रखो
लोग चाटुकारिता पर उतर आए
शर्म करो कुछ तो जिम्मेदारी रखो
#किशोर छिपेश्वर”सागर”
बालाघाट
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