क्या किस्मत भी हमारे हाथों में हो सकती है…?

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saket jain

राह में जो सुना मन में चलता रहा ।
सब खयालों को भी वह निगलता रहा ।

ये है उसकी कथा जिसने सब कुछ किया ।
हाथ फिर भी वो खाली ही मलता रहा ।

सबके छल छद्म सारे धरे रह गये ।
चाहा सबने रुके, फिर भी चलता रहा ।

सबने टोका बहुत कुछ न कर पायेगा ।
हार सबसे मिली फिर भी पलता रहा ।

साथ कोई नहीं ये तो सहनीय था ।
जो थे, उनका दगा, उसको खलता रहा ।

हो सफल वह, इसी के तो खातिर अरे ।
हर कदम पर वो खुद को बदलता रहा ।

उसकी किस्मत को देखूँ तो लगता मुझे ।
रात भर चाँदनी से भी जलता रहा ।

ऎसी किस्मत यदि हो किसी को मिली ।
समझो अपना ही दुष्कर्म फलता रहा ।

पूरी हो गई यहाँ, हां कथा आज पर ।
हार के भी ‘सहज’ वो सँभलता रहा ।

साकेत जैन शास्त्री ‘सहज’
जयपुर(राजस्थान)

matruadmin

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