सागरवंदन्

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babulal sharma
.                              १
वरुण देव को सुमिर के,नमन करूँ कर जोरि।
सागर  वंदन  मैं  लिखूँ, जैसी  मति  है मोरि।।
.                              २
जलबिनथल क्या कल्पना, सृष्टा *रत्नागार*।
वरुणराज तुमसे  बने , वंदन      *नीरागार*।।
.                              ३
अगनित नदियां उमड़के,आती चली  *नदीश*।
सब तटिनी तट तोड़नी, रम   जाती *बारीश*।।
.                              ४
विविधरूप जीवन सरे,प्राणप्रिय *जलागार*।
पुरा   सभ्यताशेष  का ,  जीवन  *पारावार*।।
.                             ५
हृदय मध्य जो जतन से, *रत्नाकर*  के  मान।
परिघटनाओं को रखे, *उदधि* सँभाल सुजान।
.                              ६
रहे  मान  मर्याद  से, *कंपति*  तभी   महान।
कभी  न  छोड़े  साथ भी, रमापते  भगवान।।
.                              ७
देवासुर मिल के किया, *सागर*  मंथन  साज।
जहर रखा शिव कंठ में, सृष्टि के हित काज।।
.                              ८
बाँट  दिये  थे  सृष्टि  हित ,चौदह  रत्नाभार।
लक्ष्मी  श्रीहरि  की  हुई, देवन  अमृत  धार।।
.                              ९
*क्षीरसिंधु* श्री हरि बसे, आश्रय लक्ष्मी शेष।
बीच *नीरनिधि* शेष की, शैय्या बनी विशेष।।
.                             १०
*जलधि* शांति के दूत सम,भक्तिपुंज साभार।
*वारिधि*  रामसेतु  जनि,  राम शक्ति संसार।।
.                             ११
*अकूपाद*  अवशेष  में, खोज  रहा विज्ञान।
राघव  धर्मन्  अस्मिता, सेतू  शेष   बखान।।
.                             १२
*पयोधि* मछुआ जीविका,सहता ताप दिनेश।
सीमा  देश  विदेश  की, बने  *समुद्र*  विशेष।।
.                             १३
*पंकनिधी*   व्यापार   के, साधन  बंदरगाह।
सीमाओं पर *तोयनिधि* ,करते सद आगाह।।
.                             १४
*अंबुधि*   अन्वेषण  सदा, होते   हैं  अविराम।
*जलनिधि* से संभावना,विविध वस्तु के धाम।
.                             १५
साधन  युद्धक  पोत भी, रहते  आते  जात।
युद्ध शान्ति  संसार  की, रहते रीत निभात।।
.                             १६
जगन्नाथ  अरु  द्वारिका, रामेश्वर  *जलधाम*।
कपिल मुनि आश्रम वहाँ,शोभा है अभिराम।।
.                             १७
*बननिधि* मानवमनशमन,सबै मिटाते भ्रान्ति।
*महासागर* तुम ही करो,जनके मनमें शान्ति।
.                             १८
विवेक शिला को देखते,आती भारत क्रांति।
क्रांति के  अग्रदूत हैं, हिन्द *सिन्धु* विश्रांति।।
.                             १९
गहन *समन्दर*  धीरता, जल रहस्य भरमार।
*अर्णव* की  माने  सदा, खारे  वीचि अपार।।
.                             २०
महा  द्वीप   सारे   बसे, धरती  के   श्रृंगार।
खार सार है पी लिया, चन्दा के  अभिसार।।
.                             २१
प्रभु ने  भी  वंदन किया, पूजा सागर तीर।
मैं भी  वंदन  कर रहा, जीवन पालक नीर।।

नाम– बाबू लाल शर्मा 
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः

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