एक ग़ज़ल

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salman

किसी से वो कभी मिलता नहीं है,
मुहब्बत को अभी समझा नहीं है।

मुझे देखे हिकारत की नजर से,
कि जैसे प्यार का रिश्ता नहीं है।

सुख़नवर बन गया उसके लिए मैं,
मगर इक शेर भी भाया नहीं है।

रहेगी यार मेरी आरजू ये,
तुझे पाए बिना जीना नहीं है।

कभी कह के गया था मिलने की वह,
अभी तक यार वह आया नहीं है।

यहाँ खातिर उसी के शहर छोड़ा,
मिरा अब हाल तक पूछा नहीं हैं।

नज़रघर में नहीं आता उजाला,
यहाँ दीपक कभी जलता नहीं है।
(बहर 1222 1222 122)

            #सलमान सिकंदराबादी

परिचय : सलमान ‘सिकंदराबादी’ राजस्थान के सिकंदरा ग्राम(जिला-दौसा)में रहते हैं। आपका व्यवसाय क्लिनिक चलाना है पर लेखन में खूब रुचि है। उर्दू से एमए कर चुके हैं और विशेष रुचि ग़ज़ल और हास्य कविता लिखने में है। आपकी उपलब्धि यह है कि, बीकानेर में कवि सम्मलेन में सम्मानित हुए हैं। आप सम्मलेन में काव्य पाठ करने के साथ ही उर्दू मंचों  का संचालन भी करते हैं।

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