#मनोरमा जैन पाखी
Read Time54 Second
पवन वेग से उड रे चेतक ,
जहाँ दुश्मन आया है ।
रख रुप विकराल उसने ,
ताँडव वहाँ मचाया है।
रक्तरंजित हो गयी धरा ,
निरपराधों के लहु से।
जाने पाये न वो नराधम
रंग धरा उसके लहु से ।
रही सिसकती आज वसुधा,
देख अपना दामन लाल।
न जाने कितनी बहनों,पत्नियों,
और माँ ने खोये लाल।
बन कर कहर अब टूटना होगा,
विकराल तूफाँ बन जा।
कर नष्ट भ्रष्ट अब ये नापाक तंत्र,
रुप काली का धर तू जा।
मत बनना मेघदूत,प्रियतम को रिझाने,
आज बन दूत दुर्गा का,जा दुश्मन मिटाने।
लौटना तभी जब शहादत का बदला लेले,
शहीदों की कुर्बानी को धूल में मिलने बचाले।
Average Rating
5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%
पसंदीदा साहित्य
-
April 8, 2020
उपलब्धि
-
January 5, 2020
प्यार ही प्यार हो
-
June 27, 2019
मयखाना
-
January 20, 2018
दीप जला के ठण्डक आई