माफ़ करना जी !!
मौसम है प्यार का
और हमें प्यार करने की
फुरसत नही !!
फागुनी दिन प्यार के
इकरार के ,,,
और महुआ की
बसंती मस्तियाँ
अभी तो गा रहे ‘बसंत राग’
और कुछ सुनाने की फ़ुरसत नही !!
जीवन के अंकुरों से
भर गयी हैं डालियाँ
क्यारी-क्यारी
खिल रहा है रुप-रंग
छा रही हवाओं में
फागुन की शोखियाँ ,,
मौसम है प्रेम में
खो जाने का . . .
और हमे खोने की
फुरसत नही !!
देखो तो . . . . . . .
ओढ़ ली पलाश ने फिर
प्रेम की चादर ,,,
तितलियाँ फिर उड़ चली हैं
खुशबुओं में नहाकर ,,
फिर से महकी है
मन की गली ,,
भंवरों ने फिर छेड़ी प्रेम धुन
निखरी है कलियों की तरुनाई !!
आ गई फिर से बहारें आम पर
कोयल बजाती है शहनाई !!
चंचल ऋतुएँ झाँक रही हैं
चुपके-चुपके
खोल खिड़कियाँ
अभी तो तितलियों के
साथ -साथ उड़ना है ,
अभी तो खुशबुओ से
मन को अपने भरना है ,
अब दूर न जा पाएंगे
मिलकर पलाशो से ,,,,
इस बसंत हो गये
हम तो बहारों के ,,
आपकी आँखों में
हम खो लेंगे
फिर कभी . . . .,,
माफ़ करना जी !!
#मीनाक्षी वशिष्ठ
नाम->मीनाक्षी वशिष्ठजन्म स्थान ->भरतपुर (राजस्थान )वर्तमान निवासी टूंडला (फिरोजाबाद)शिक्षा->बी.ए,एम.ए(अर्थशास्त्र) बी.एडविधा-गद्य ,गीत ,प्रयोगवादी कविता आदि ।