अपने-अपने तुरुप के पत्ते

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vaidik
इस समय देश की कोई भी राजनीतिक पार्टी ऐसी नहीं है, जिसे विश्वास हो कि वह चुनाव जीत जाएगी और वह सरकार बना लेगी। भाजपा और कांग्रेस अखिल भारतीय पार्टियां हैं। देश के लगभग हर जिले में इनका संगठन मौजूद है। इन्होंने अपने दम पर केंद्र और प्रांतों में सरकारें भी बनाई हैं। अब भी ये दोनों पार्टियां दावा कर रही हैं कि 2019 के चुनावों के बाद वे ही सरकार बनाएंगी लेकिन दोनों पार्टियों के नेताओं की हवा खिसकी हुई है। उन्हें पता है कि गणित का वे कोई भी सूत्र भिड़ा लें, उन्हें स्पष्ट बहुमत किसी हालत में नहीं मिलनेवाला है। अच्छा भाई, बहुमत न मिले तो न सही, कम से कम नाक तो नहीं कटे। याने कांग्रेस की 50 से बढ़कर 100-125 हो जाएं और भाजपा की 272 से कम से कम 200 तो रह जाएं। इतनी सीटों का भी दोनों को पूरा भरोसा नहीं है। दोनों पार्टियों को यह समझ में नहीं आ रहा कि कौनसा दांव मारा जाए कि चुनाव में मनोवांछित सीटें मिल जाएं। किसी भी पार्टी के पास मतदाताओं को रिझाने के लिए कोई झुनझुना नहीं है। कोई विकल्प नहीं है। कोई सपना नहीं है। कोई सब्जबाग नहीं है। एक-दूसरे की टांग खींचना ही उनका काम रह गया है। प्रांतीय पार्टियां महागठबंधन बनाने की पहल कर रही हैं। यह महागठबंधन भी वैकल्पिक नक्शे के हिसाब से ठनठनगोपाल है। तो अब क्या रास्ता बचा रह गया है ? अभी सभी दल कोई न कोई तुरुप का पत्ता निकालने के चक्कर में हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस की तुरुप का पत्ता है। अगर यह चल गया तो कम से कम उत्तरप्रदेश में 2 की बजाय 10 सीटें तो मिल ही सकती हैं लेकिन अखिल भारतीय स्तर पर यह पत्ता चलेगा या हिलेगा, इसमें भी संदेह है। जहां तक भाजपा का सवाल है, उसके तरकस में अभी कई तीर हैं। वह आम मतदाताओं को इतनी चूसनियां परोस सकती है कि वे मतदान-पेटी तक पहुंचते-पहुंचते मदहोश हो जाएं लेकिन साढ़े चार साल के जबानी जमा-खर्च ने इतना मोहभंग कर दिया है कि जनमत को अब किसी भी तरह अपने पक्ष में करना आसान नहीं है। हां, अंतिम ब्रह्मास्त्र है, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण ! लेकिन मोदी सरकार तो अभी भी खड़ी-खड़ी अदालत का मुंह ताक रही है। उसके पास यह तुरुप का पत्ता है और आखिरी है लेकिन प्रियंका की तरह इसकी पहुंच भी बहुत सीमित होती जा रही है।
#डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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