समुद्र की लहरें

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kalpana
लहरें थी समुद्र की
बहुत विशाल
न झूका वह
उनके आगे
खड़ा रहा
तान कर सीना
चाहा, लहरों से जीतना
देख मनु की इस अदा को
समुद्र मंद-मंद मुस्काया
कहा कान में लेहरो की उसने
और हुई पहले से अधिक विकराल
अब डगमगाया मनु उससे
खुद को उस तीव्रता से
न बचा पाया
मनु ने फिर भी हार न मानी
न झूका
लड़ता रहा अहम की ख़ातिर
और लहरों ने उसको
बहुत समझाया
समुद्र ने मनु को
निगलना चाहा
लेहरो न मौका देना चाहा
मनु तट पर लेटे लेटे
जान बची
ईश्वर के गुण गाया ।

 #कल्पना भट्ट

परिचय : पेशे से शिक्षिका श्रीमती कल्पना भट्ट फिलहाल भोपाल (मध्य प्रदेश ) की निवासी हैं। 1966 में आपका जन्म हुआ और आपने अपनी पढ़ाई पुणे यूनिवर्सिटी से 1984 में बी.कॉम. के रुप में की। विवाह उपरांत भोपाल के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय से बी. एड.और एम.ए.(अंग्रेजी) के साथ एलएलबी भी किया है। आप लेखन में शौकिया तरीके से निरंतर सक्रिय हैं।

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