ये जो कंगूरे चमकते शान से

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narendr pal
ये जो कंगूरे चमकते शान से आज़ाद हो,
नींव के हे पत्थरों तुमको नमन है देश का।
भारती माँ पर यहाँ जब भी कोई खतरा हुआ,
अपने तन का आखिरी तत्पर लहू कतरा हुआ।
प्रार्थना हो या अजानें या कोई उपदेश हो,
तुम्हारी पूजा रही कि खैरियत में देश हो।
देवता तुम ही यहां तुम ही नया वरदान हो,
देह के हे मन्दिरों तुमको नमन है देश का।
तेज आंधी में अटल तुम और अखण्डित ज्योत हो,
घोर अंधियारों में कर्तव्यों का तुम उद्योत हो।
ताण्डवों सम हो समंदर या हवा विपरीत हो,
पर्वतों-सा हो खड़ा रहने की तुम एक रीत हो।
काल की लहरों में भी तुम सामने महाकाल हो,
आँधियों के धीवरों तुमको नमन है देश का।
नींद हमको दी तुम्हारी रात को है जागकर,
घर में खुशियां दी हमें परिवार तुमने त्यागकर।
ईद और दीवाली पर झूमती यहाँ टोली रही,
रक्त में खुद की रंगी तुम्हारी हर होली रही।
खुद में खारापन लिए तुमने लुटाई मोतियाँ,
ज्वार के हे सागरों तुमको नमन है देश का।
 #नरेन्द्रपाल जैन
उदयपुर (राजस्थान)

matruadmin

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