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देहरी करती प्रतीक्षा
राह तकते द्वार भी
मन है व्याकुल देखना
चाहे नयन के पार भी
जाने कितनी दूर जा
पहुंचे नगर से दूर तुम
हर दिशा यादें तुम्हारी
दृश्य दूजे सारे गुम
सूख कर सहरा हुए हैं
ये नयन के धार भी…
अर्थ का तब अर्थ क्या
जब दिन गुजरते क्षोभ में
आज सूली पर चढ़ा हर
पल, सुखद के लोभ में..
सुख तुम्हारे साथ मेरा
और जीवन सार भी…
घर हमारा ये महल सा,
गाँव का अभिमान है
ये अदालत गाँव की
पुरखों का ये स्थान है..
क्या महल से बढ़ के है
कोठी तुम्हे स्वीकार भी..
अब कबूतर द्वार पर
करते गुटर गु देख लो..
यह युगल मुझको चिढ़ाते
मन जलाते देख लो..
क्या तुम्हें देती सुनाई
यह मेरी चीत्कार भी…
भाव मन में उठ रहे हैं
कैसे , क्या बतलाऊँ मैं
है मुझे सन्देह कितने
तुम पे, क्या समझाऊँ मैं
क्या लुभाता है वहाँ
कोई तुम्हें श्रृंगार भी…
क्या हुआ खाई थी सौगंध
सात फेरों के समय
साथ हर क्षण दोगे मेरा
कर रहे थे तुम विनय..
आज क्यूँ वंछित रहूँ जो
है मेरा अधिकार भी…
देहरी करती प्रतीक्षा
राह तकते द्वार भी..!!
#हेमंत बोर्डिया
परिचय –
नाम – हेमंत बोर्डिया
पिता – श्री कुंजीलाल बोर्डिया
माता – श्रीमती द्वारकी बोर्डिया
भार्या – श्रीमती दीपाली बोर्डिया
पुत्र – सार्थक बोर्डिया
जन्म – २८ जून १९७६
जन्मस्थान – खरगोन (म.प्र.)
कर्मस्थल – इंदौर (मध्यप्रदेश)
शिक्षा। – स्नातक विज्ञान (गणित)
रोजगार। – प्रबंधक विपणन
विधा – ग़ज़ल, गीत, मुक्त कविता
उपलब्धि एवं सम्मान-
पहला साझा ग़ज़ल संकलन ‘गूँजन’ का प्रकाशन ।
अंतरा शब्द शक्ति सम्मान 2017 ।
ज़िन्दगी के सफ़र में हासिल कुछ अनुभवों को गीत, ग़ज़ल और नज़्मों में ढालने का हुनर आप जैसे पाठकों की नवाज़िशों से परवान चढ़ रहा है । ऑफीस के लिये रोज़ाना 80 कि.मी. का सफ़र यूँ तो आम व्यक्ति के लिए बड़ा हैरान करने वाला होता लेकिन मेरे लिये यही सफ़र खास बन गया है । पिछले तीन वर्षों से कलम और एहसासों की जुगलबंदी ने मुझे एक छोटे से कलमकार का रूप दिया है । मेरी रचनाओं में से 80 प्रतिशत रचनाएँ इसी सफ़र में पृष्ठांकित हुई है ।
लेखन का उद्देश्य – आत्मभिव्यक्ति, आत्मसंतुष्टि और इस अभिव्यक्ति के माध्यम से पाठक के हृदय से जुड़ना ।
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Tue Jan 1 , 2019
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