गाली’ एक वाचिक बलात्कार

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एक छोटे से शब्द गाली से घृणा होती है मुझे, जब दो व्यक्तियों के बीच झगड़ा होता है या किसी व्यक्ति को जब किसी दूसरे व्यक्ति पर क्रोध आता है तो वह गालियाँ देकर अपना क्रोध शांत करता है,मैंने सभ्य और संस्कारी पुरूषों को भी माँ बहिनों पर गंदी गालियां बकते हुए देखी हूँ, जहाँ पर हम स्त्रियों के सम्मान की बात करते हैं तो सबसे पहले तो यहाँ पर सम्मान की जरूरत है,स्त्रियों को सार्वजनिक स्थानों पर गालियों से अपमानित करते हुए शर्म आनी चाहिए, यह तो एक प्रकार से बलात्कार ही है वाचित बलात्कार यह सोचकर ही इस सभ्य समाज की सभ्यता से घृणा होती है मुझे ,क्या स्त्री को अपनी गाली मे लाये बिना उनकी बात अधूरी रहती है? जिन शब्दों को अपनी लेखनी से लिखने में अपमान लग रहा है जरा सोचिए कि उन शब्दों को सुनकर उन स्त्रियों को कैसा महसूस होता होगा, यह भाषिक बलात्कार बंद होना चाहिए जो हमारे घरों में ,हमारे आस पडोस मे अक्सर होते रहता है अरे!कुछ तो मनुष्यता होनी चाहिए एक स्त्री की कोख से जन्म लिया है, एक स्त्री ने ही जीवन संगिनी बनकर उनके जीवन को संवारा है और तुम पुरूष बनकर उसी स्त्री को अपमानित कर रहे हो ,एक पिता के सामने उसका बेटा माँ बहिन की गाली बकता है फिर भी पिता को कुछ गलत नहीं लगता क्योंकि वह भी इन शब्दों का प्रयोग करता है मतलब किसी और की बहिन बेटी माँ के प्रति हमारे शब्दों में अपमान करना हमारे संस्कार ही बन गए हैं जो हम अपने बच्चों को भी विरासत में दे रहे हैं, समाज के सभी सभ्य पुरूषों को इस बिषय मे विचार जरूर करना चाहिए, सभी धर्मों से इन गालियों को व्यसन मानकर त्याग कराया जाना चाहिए ,सिखाया जाना चाहिए कि यह बहुत ही गलत है ,सभी स्त्रियों से मेरी अपील है कि हमें अपना सम्मान वापिस माँगना चाहिए ,दैहिक बलात्कार से बचाव तभी संभव होगा जब भाषित बलात्कार से हम स्त्रियों की सुरक्षा होगी,

मीना विवेक जैन
वारासिवनी, मध्यप्रदेश

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