चाँद बनके रातों को छत पे बुलाते क्यों रहे

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salil saroj
जब मोहब्बत था तो छुपाते क्यों रहे
आग समंदर में फिर लगाते क्यों रहे ।।1।।
जब जाना था ज़माने में रुसवा करके तो
भरी महफ़िल में हक़ जताते क्यों रहे ।।2।।
एक जुदाई भर की तुम्हारी हद थी तो
हर मौसम मुझे अपना बताते क्यों रहे ।।3।।
जब खत्म ही हो गया था सब राब्ता
बताओ कि मेरे ख़्वाबों में आते-जाते क्यों रहे ।।4।।
जब गए तो मुड़ कर भी नहीं देखा तो
अब तक मेरी तस्वीर से गले मिलाते क्यों रहे ।।5।।
तुमने तो ना आने की कसमें खाईं थी तो
चाँद बनके रातों को छत पे बुलाते क्यों रहे ।।6।।
#सलिल सरोज

परिचय

नई दिल्ली
शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011),  जीजस एन्ड मेरीकॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)।

प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव।सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।

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