आख़िरी ख़त

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ujval jhaa
तेरे साथ रहना मुझे इनकार नहीं था
बेवफा निकली तू,तुम्हें मुझसे प्यार नहीं था
खोकर मुझे,तुम्हें भी जीना आसान नहीं होगा
मेरे सिवा तेरा भी कोई अरमान नहीं होगा
अब दिल के दर्द से मुझे बीमार मत करना
निर्दोष हूँ मैं,मुझे गुनहगार मत करना
इस टूटते रिश्ते को अब,तुम्हें ही बचाना होगा
तुम्हे मेरे पास खुद लौटकर आना होगा  ।

ये दुनियां मुझे गुमनाम नहीं होने देगी
तेरे इश्क में मुझे बदनाम नहीं होने देगी
तुम्हें भी मेरे गम में दिन-रात तड़पना होगा
देखेगी  मुझे पास, पर वो तो एक सपना होगा
देखकर मुझे सपने में,तू पास आना चाहेगी
जोड़कर इस रिश्ते को मेरा प्यार पाना चाहेगी
पर मोहब्बत है या नहीं मुझसे,अब तुम्हें ही बताना होगा
तुम्हे मेरे पास खुद लौटकर आना होगा ।

मैं समझा ही नहीं,इस क़दर ख़फा हो जायेगी
देखकर दुनियां को तू भी बेवफ़ा हो जायेगी
चली जायेगी,कसमें,इरादे,वादे तोड़कर
परेशां ना करूँ तुम्हे,इसलिए शहर छोड़कर
अब दिल का दर्द दुनिया वालों को सुनाता हूँ
कभी लिखता हूँ  मैं इसे,कभी खुद से गुनगुनाता हूँ
पर बहे आंसुओं की कीमत तुम्हें भी चुकाना होगा
तुम्हे मेरे पास खुद लौटकर आना होगा ।

एक समय था, जब हर वक्त बात किया करती थी
बुलाकर मुझे अक्सर मुलाक़ात किया करती थी
अब सपनों में भी मुझसे मुलाक़ात नहीं होगी
पास रहकर भी अब कभी बात नहीं होगी
जी भरकर देख लिया तुम्हें,जब दिल तोड़कर जा रही थी
अश्क था तेरे आँखों में, जब मुझे तन्हा छोड़कर जा रही थी
अब दूर होकर मुझसे, तुम्हें भी खुद को समझाना होगा
तुम्हे मेरे पास खुद लौटकर आना होगा ।

✍उज्ज्वल कुमार झा
बसुआरा (दरभंगा बिहार)

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