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आज़ादी के सही मायने,
हम तो भूल चुके हैं ।
अपनी सरहद,अपना मुल्क़,
क्यों हम भूल चुके हैं ।।
खींच कर लकीरें ज़मीनी,
दिल जुदा कर चुके हैं ।
अपने वतन की मिट्टी को,
क्यों खौफज़दा कर चुके हैं ।।
मेरा मुल्क़ है मेरी शान,
बदनाम इसे कर चुके हैं ।
देशभक्ति का स्वांग रचाकर,
कितने क़त्ले आम कर चुके हैं ।।
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।
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Wed Aug 8 , 2018
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