Read Time1 Minute, 7 Second
लग गई दीमक देखो इंसान की फसल में
बदल गया है आदमी कितना बस आजकल में
दिल पसीजता नहीं, शहादत देखकर भी
जज़्बात कैसे बने है पत्थर, बस आजकल में
सुना था मयस्सर है सुकूँ, दरख़्तों की छाँव में
माँ-बाप हो रहे है बेघर, बस आजकल में
रहमदिली, ख़ुदाई, अपनापन, ये और बातें है
हैवान बन गया है इंसान, बस आजकल में
तेरे बाद न ज़िक्र होगा तेरा यहाँ ‘सरल’
ये किस्सा भी दफ़ा होगा, बस आजकल में
सौरभ ‘सरल मोहन’
#परिचय
सौरभ पारीक
निवासी : जयपुर, राजस्थान।
शिक्षा : स्नातकोत्तर (राजस्थान विश्विद्यालय)
कार्य : हिंदी शिक्षक एवं कवि कर्म द्वारा मातृ स्वरूपा हिंदी की तृणतुल्य सेवा।
स्वयं के विषय में मेरा दृष्टिकोण
*अब और क्या कहूँ कि कैसा हूँ मैं*
*जिसने जैसे देखा, बस वैसा हूँ मैं।*
*सौरभ ‘सरल मोहन’*
Post Views:
718
Sat Nov 24 , 2018
खत लिखती हूँ , इस आस से , कि तुमसे सहारा मिल जाए , जितने गिले , शिकवे जमा हैं , मेरे दिल में , सारे धूल जाएँ । पढ़कर जवाब जरूर देना , या हो सके तो आ ही जाना , मन मेरा एक बार फिर से , सुनहरे […]