बङ़ा दिल-छोटे लोग

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कमला बेन कल से तुम घर आ जाना , वहीं खाना बना देना ….अब तो लॉकडाउन में छूट है आराम से आ सकती हो पारस बाबू ने हाथ धोते हुए कहा।

आपको यहाँ आने में कोई तकलीफ नहीं हो तो यही आते रहिये ….हमारे यहाँ तो सात लोगों का खाना बनता ही है। आपके लिए कुछ भी अलग से नहीं पकाना पङ़ता ।आपके यहाँ आने पर अकेले आपका खाना बनाना होता है। काम कम होता है और समय ज्यादा लगता है कहते हुए कमला ने सोंफ का डिब्बा पारस बाबू की ओर बढ़ा दिया।

दो महिने से तुम्हारे यहाँ खाना खाने आ रहा हूँ कमला बेन, अब तो पूरा परिवार अपना सा लगने लगा है पर कब तक….अब तुम आना शुरु कर दो …वहीं बना दिया करो।

ये तो आपका बङ़पन्न है पारस भाई, जो इतना मान दे रहें है….वर्ना लोग तो हम छोटे लोगों के घर का पानी भी नहीं पीते ….कमला बेन ने पीङ़ा पगे स्वर में कहा।

छोटे लोग नहीं, हमारी सोच होती है कमला बेन।मैं तो अहसासमंद हूँ तुम्हारे परिवार का, जिसने मुझे सिर्फ रोटी ही नहीं दी…. मान, सम्मान ,आदर, और इतना मीठा व्यवहार दिया कि मैं जिंदगी भर कर्जदार रहूँगा….कहते हुए पारस बाबू अपनी गीली आँखों को पोंछते हुए बाहर निकल गये।

वे रास्ते भर सोचते रहे…. लॉकडाउन के बाद खाना बनाने वाली कमला बेन ने फोन पर कहा था – पारस भाई ,मैं खाना बनाने नहीं आ पाऊँगी पर मुझे आपकी चिन्ता है। भाभी के जाने के बाद पिछले पाँच सालों से आपका खाना बना रही हूँ….पर अब….।

मैं समझ रहा हूँ कमला बेन, देखता हूँ ….कुछ न कुछ बंदोबस्त हो ही जाएगा कहते हुए पारस भाई के शब्दों से लाचारी साफ-साफ टपक रही थी।

बंदोबस्त कुछ नहीं होगा इस समय पर…. आप मेरी बात मानिए हर रोज सुबह मेरे यहाँ खाना खाने आ जाइए मेरा घर सिर्फ दो किलोमीटर दूर है, आप पैदल भी आ सकते है , पुलिस रोके तो अपनी मजबूरी बता देना….कमला बेन ने जोर देकर मनुहार सहित उससे कहा।

लेकिन…..पारस बाबू अचकचाये।

लेकिन-वेकिन कुछ नहीं…. मैं कल से आपकी राह देखूँगी …..बिना जबाब की प्रतिक्षा किये कमला बेन ने फोन रख दिया।

पारस बाबू ने बहुत सोचा पर कोई ओर रास्ता नहीं था सो उन्होंने कमला बेन के घर जाना शुरु कर दिया ।तब से अब तक रोज वे खाना खाने उसके यहाँ जा रहे थे। शुरू-शुरू में संकोच रहा पर कमला बेन और उसके परिवार का आदर पाकर वे अभिभूत हो गये। सुबह का खाना वहीं खा लेते और शाम का पैक करवाकर ले आते।

धीरे-धीरे वे उस घर के सदस्यों के साथ भी घूल मिल गये वे….थोङ़े दिन बाद तो उस घर की जमने वाली ताश और कैरम की महफिल में भी शामिल होने लगे वे….। नितांत अकेले थे वे…. सो घर पर पहूँचने की भी कोई जल्दी रहती थी उन्हें। कई बार सुबह के गये शाम का खाना खाकर ही लौटते थे वे।अम्मा, कमला बेन , उसका पति माघव,, बच्चे सबका अपनत्व उनको भीतर तक भीगो जाता था।

अब लॉकडाउन खुल गया है। कमला बेन खाना बनाने आ पाएगी पर उनका लॉकडाउन तो अब शुरु हुआ है। कितने अच्छे है बङ़े दिल के ये छोटे लोग ….सोचते हुए पारस बाबू की फिर आँखें भर आई।

डॉ पूनम गुजरानी
सूरत

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