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खत लिखती हूँ , इस आस से ,
कि तुमसे सहारा मिल जाए ,
जितने गिले , शिकवे जमा हैं ,
मेरे दिल में , सारे धूल जाएँ ।
पढ़कर जवाब जरूर देना ,
या हो सके तो आ ही जाना ,
मन मेरा एक बार फिर से ,
सुनहरे सपनों में खो जाए ।
देखा था पहली बार तुम्हें जब ,
दुनिया बड़ी खुशरंग लगी थी ,
फिर हुआ अचानक कुछ ऐसा
घिरते ही गए गम के साये ।
कहाँँ हो , किस हाल में हो तुम ?
खबर नहीं है मुझे अरसे से ,
मगरूर हवा को क्या पड़ी जो ,
वो तुुम्हारा पता बता जाए ।
आती – जाती साँसें अब भी ,
नाम तुम्हारा गुनगुना रही हैं ,
तुम ही बता दो कोई कैसे ,
बढ़ी धड़कनों पे काबू पाए ।
अभी बस इतना ही लिखना है ,
शेष बातें , तुमसे मिलने पर ,
लम्हा – लम्हा तुम्हें याद किया ,
कितना , ये राज न खुल जाए ।
खत लिखती हूँ , इस आस से ,
कि तुमसे सहारा मिल जाए ,
जितने गिले , शिकवे जमा हैं ,
मेरे दिल में सारे धूल जाएँ ।
श्रीमती गीता द्विवेदी
सिंगचौरा(छत्तीसगढ़)
मैं गीता द्विवेदी प्रथमिक शाला की शिक्षिका हूँ । स्व अनुभूति से अंतःकरण में अंकुरित साहित्यिक भाव पल्वित और पुष्पीत होकर कविता के रुप में आपके समक्ष प्रस्तुत है । मैं इस विषय में अज्ञानी हूँ रचना लेखक हिन्दी साहित्यिक के माध्यम से राष्ट्र सेवा का काम करना मेरा पसंदीदा कार्य है । मै तीन सौ से अधिक रचना कविता , लगभग 20 कहानियां , 100 मुक्तक ,हाईकु आदि लिख चुकी हूं । स्थानीय समाचार पत्र और कुछ ई-पत्रिका में भी रचना प्रकाशित हुआ है ।
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