चिड़िया रानी चिड़िया रानी सूने हैं सब कुआँ बावड़ी
आजकल नहीं आती हो कहाँ मिल जाता है पानी
तरस गई हैं घर की मुँढेर और सकोरे तरस गये
नहीं आई हो कब से तुम कितने सावन बरस गये
रोज रोज जाकर देखता छत पर है क्या कुछ निशानी
लेकिन जैसा का तैसा है रखा हुआ यहाँ दाना पानी
हमसे क्या गलती हो गई जरा खुलकर बतलाओ न
आ जाओ अब आ जाओ और अधिक मत तरसाओ न
चिड़िया बोली सुनो मित्रों वैसी बात नहीं है
तुम सी अंधी दौड़ मैं दौड़ू वैसी जात नहीं है
मैं जंगल की रहने वाली गाँव- गाँव में घूमती हूँ
महलों का मुझे शौक नहीं है मिट्टी के घर झूमती हूँ
विलासिता के तुम भोगी सब जंगल झाड़ी काट दिये
ताल तल्लैया कूप जलाशय पोखर सारे पाट दिये
कहाँ बनाऊँ मैं घरौंदा कहाँ पिऊँगी मैं पानी
और पूछते हो मुझको क्यों रूठे हो चिड़िया रानी
अतुल बालाघाटी
बालाघाट (मध्यप्रदेश)