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क्या इंसान में इंसान भी कहीं जिंदा है।
क्या अभी भी इंसान का ईमान जिंदा है।।
रोज दूसरे लोगो के कर्मो का आंकलन करता है।
क्या अभी भी तेरे अंदर का मासूम बच्चा जिंदा है।।
घटती हुई उम्र के साथ सब कुछ कहीं पीछे छूट रहा है।
वो दुखो से अनजान तेरे अंदर का इंसान कहीं जिंदा है।।
धीरे – धीरे रेत सा जीवन हाथ से निकल रहा है ।
क्या कोई तेरे दुनिया से जाने के बाद याद करेगा तुझको,
देखेंगे पन्नो पर लिखे गए एहसास तेरे कब तक जिंदा है।।
नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश )
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