
आ लौट के आज गुरुवर, तुम्हे बीना नगरी बुलाती है /
जैसे की तैसी पढ़ी जब से , यहाँ से गए हो आप तब से /
आ लौट के आज गुरुवर, तुम्हे बीना नगरी बुलाती है //
वर्षे नयन से तरसे है मन से , वर्षे है मन अब तो आजा /
हर श्रावक नयन बिछाए यहाँ बैठे, अब तो पुन यहाँ तुम आ जाओ /
धर्म ज्योत जला के गए हो , तो तेल पुन:उसमे तुम डाल जाओ /
आ लौट के आज गुरुवार, तुम्हे बीना नगरी बुलाती है /1/
एक पल है मिलाना एक पल है बिछुड़ना, कैसा ये जीवन का मेला /
एक पल है जीना एक पल है मारना , कैसा ये जीवन फेरा /
ये सांसे ने रुक जाये , मुनिवर एक बार दर्शन दो /
आ लौट के आज गुरुवर, तुम्हे बीना नगरी बुलाती है /2/
सत्य अहिंसा का जो पाठ , तुमने पढ़ाया था यहाँ पर /
जिओ और जीने की परीभाषा सिखलाई थी सभी को /
हर श्रावक उस पर चल रहा है ,देख तो लो एक बार यहाँ अकार /
आ लौट के आज गुरुवर, तुम्हे बीना नगरी बुलाती है/3/
उपरोक्त भजन व् गीत आचार्य श्री १०८ परम पूज्य विधासागर जी के चरणो में संजय जैन समर्पित करते है / इस समय गुरुवर खुजराहो (मध्यप्रदेश) में संघ सहित चातुर्मास कर रहे है /
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।