वाह रे जमाने,तेरी हद हो गई,
बीवी के आगे माँ रद्द हो गई।
बड़ी मेहनत से जिसने पाला,
आज वो मोहताज हो गई..
और कल की छोकरी,
तेरी सरताज हो गई..
बीवी हमदर्द, माँ सरदर्द हो गई।
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई..।।
पेट पर सुलाने वाली,पैरों में सो रही,
बीवी के लिए लिम्का..
माँ पानी को रो रही..
सुनता नहीं कोई,
वो आवाज देते सो गई।
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई…।।
माँ मांजती बर्तन,
वो सजती-संवरती है..
अभी निपटी न बुढ़िया तू,
उस पर बरसती है..
अरे दुनिया को आई मौत,
तेरी कहाँ गुम हो गई।
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई …।।
अरे जिसकी कोख में पला,
अब उसकी छाया बुरी लगती..
बैठ होण्डा पे महबूबा,
कन्धे पर हाथ जो रखती..
वो यादें अतीत की,
वो मोहब्बतें माँ की..
सब रद्द हो गई।
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई…।।
बेबस हुई माँ अब,
दिए टुकड़ों पर पलती है..
अतीत को याद कर,
तेरा प्यार पाने को मचलती है..
अरे मुसीबत जिसने उठाई,
वो खुद मुसीबत हो गई।
वाह रे जमाने तेरी हद हो गई ….।।
मां तो जन्नत का फूल है,
प्यार करना उसका उसूल है..
दुनिया की मोह्ब्बत फिजूल है,
मां की हर दुआ कबूल है..
मां को नाराज करना इंसान तेरी भूल है।
मां के कदमों की मिट्टी जन्नत की धूल है।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।