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बहती मेरी कल-कल धारा
श्वेत रंग मे रंगी हुई सी
है पवित्रता समेटे हुऐ
फिर भी देखो ठगी हुई सी
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करते है,पवित्रता की बाते
मुझको ‘गंगा माँ’ कहते है
खाते है सौगन्ध मेरी
गर्व से सीना फुलाते है
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मै तो आई थी पत्थरों से
सर अपना टकराकर
राह के पर्वतों के सीने पर
रास्ता अपना बनाकर
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उतरी थी आकाश से मै
शीव की जटा मे समाई थी
पीड़ा तुम्हारी देख न पाई
इसलिये धरती पर आई थी
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आस्था के नाम पर ‘हाँ’
माँ का सर झुका डाला
माथा टेका मेरे तट पर
मुझको मैली कर डाला
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हाँ, निर्लजो तुमने तो
मेरा सीना ही फाड़ दिया
ओढ़ाकर कफन मेरे बेटो को
मेरी ही गोदी मे डाल दिया
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तुम क्या जानो मेरी वेदना
ह्रदय मे दर्द समाये है
मेरा सीना चिरकर देखो
कितने घाव लगाये है
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रोज मिलाते तुम ‘रसायन’
पहनाते रोज गले मे माला
फुलो से करते मेरा स्वागत
प्रदुषित करते मेरी जलधारा
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अब तक सहा,अब न सहूँगी
पार लगाई,तुम सब की नैया
धोकर पाप तुम्हारे देखो
हाँ,मैली हो गई तुम्हारी मैया
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तुम हो मेरे अपने बेटे
पाप तुम्हारे धोकर हारी
मुझको अब स्वच्छ बनाओ
तुम्हारी है यह जिम्मेदारी
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आज दुखी है गंगा माँ
मन उसका बेटो से हारा
आँसु उसके बहते है,
जैसे गंगा की अविरल धारा
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#धनराज वाणी
परिचय-
श्री धनराज वाणी ‘उच्च श्रेणी शिक्षक’ हाई स्कूल उबलड विकास खण्ड जोबट जिला अलिराजपुर में 30 वर्षो का सेवाकाल (मूल निवास जोबट)
जन्म स्थान जोबट(मध्यप्रदेश)
पत्नि का नाम -कविता वाणी (प्राचार्य )इनकी भी साहित्य में रुचि व महिला शसक्तीकरण के क्षेत्र में कार्य व आकाशवाणी मे काव्य पाठ किया
2.शिक्षा-एम.ए.बी.एड.(समाजशास्त्र)
3.रुचि-साहित्य व रचनाकार
विषय-वीरस,चिंतन,देशभक्ति के गीत व कविताओं की रचना
4.उपलब्धियां-आकाशवाणी इंदौर से 7 बार काव्य पाठ किया व स्थानीय,जिलास्तरीय व अखिल भारतीय मंचो से भी काव्यपाठ किया!
वर्तमान में अर्पण कला मंच जोबट मे साहित्य प्रकोष्ठ का प्रभार है.
5.बचपन से साहित्य के प्रति रुचि व हिन्दी के प्रति प्रेम
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