तिनका

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shashikala jha
एक कमजोर तिनका
तैर रहा था
उदंड लहरों के थपेड़ों में ।
लहरें बार- बार आतीं
संपूर्ण वेग से
डुबो देना चाहती
तिनके को ।
तैरता हुआ तिनका
स्वयं भी
समझ न पा रहा था
आखिर क्यों वह
इन प्रचंड लहरों में
डूब नहीं रहा है?
लहरों का प्रहार
तिनके का तैरना जारी रहा
अंततः थकने लगी लहरें
समझ गया तिनका
न डूबने का कारण ।
उसने लहरों से कहा-
“आखिर क्यों डुबो देना
चाहती हो तुम मुझे?
तुम्हारे पास तो
अपार जल संपदा है
शक्तिशाली हो तुम
क्यों व्यर्थ ज़ाया कर रही हो
अपनी उर्जा ।”
“मैं तो बस एक
निरीह तिनका हूँ ।
हाँ,
एक फ़र्क है हम दोनों के बीच
तुम्हारा निर्मल जल
अहंकार के खारेपन से
भारी हो गया है ।
मैं अदना सा तिनका
दूसरों के दर्द को भी
महसूस कर
इतना दुबला और हल्का
हो गया हूँ कि
डूब हीं नहीं सकता ।”
शायद यही फर्क है
करुणा और अहं के बीच-
करुणा कभी डूबती नहीं
अहं सदैव ख़ारा और
भारी रहता है ।
#शशिकला झा
परिचय-
शशिकला झा 
जन्म- 16 मार्च 1961
शिक्षा- एम •ए•(राजनीति विज्ञान) शोधार्थी ।
अभिरुचि- लेखन, गीत कंपोजिंग, छायांकन ।
प्रकाशित- विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रतिक्रियाएँ, कविताएँ, गीत, आलेख, लघुकथा, लघु आत्मकथा आदि प्रकाशित ।
पता-
जिला- सुपौल  (बिहार) 

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