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जज्बात कभी कुछ इस तरह उभरते हैं।
करने को बयां उनको अल्फाज नहीं मिलते हैं।
जब उठती है दिल में कसक कोई
तो दिल बेकाबू हो उठते हैं।
नही मानता ये दिल किसी रस्म कोई बंधन किसी रिवाज को
बस जो है अपने मन में वही करने को मचल उठते हैं।
किंतु थम जाती है चाहकर भी रुह न जाने किस अजनबी अहसास से
कदम बढना चाहकर भी थम जाते हैं।
जो रोक लेते हैं हमें किसी भाव मे बहने से
शायद इन्हीं को संस्कार कहते हैं।
बना देते हैं हमें आम से कुछ खास
हम अपने जीवन की इन्हें बुनियाद कहते हैं।
#शशि दुबे ‘लाड़ली’
परिचय-
नाम – शशी दुबे ‘लाड़ली’
जन्मस्थान- आगरा
शिक्षा – दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक
अनुभव – 5 साल शिक्षिका के रूप में एक निजी संस्थान में कार्यानुभव
वास्तुशास्त्र विशेषज्ञ
साहित्य – बचपन से साहित्य से लगाव रहा। विद्यालय एवं विश्वविद्यालय में कविता तथा वाद – विवाद प्रतियोगिता में प्रदर्शन। कविता लेखन में विशेष रूचि।
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