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हम गर्व महसूस करते हैं
मीठी है हमारी बोली
हम हैं हिन्दुस्तानी ।
अंग्रेजों ने हमें
गुलाम बनाया
फिर भी हमने
अंग्रेज़ी भाषा को
अपनाया ।
अंग्रेज़ी जब बोलते हैं
हम स्मार्ट हो जाते हैं ।
ये सोच अब
बदलनी चाहिए
हिन्दुस्तानी भाषा को
दिल से अपनाना है।
हम हैं हिन्दुस्तानी
मातृभाषा को
अपनायेंगे
हिंदी को गले लगायेंगे ।
हिन्दुस्तानी हैंं
हम भाई – भाई
हिन्दी को अपनाकर
एक बंधन से जुड़ेंगे
तमिल , तेलुगु ,
कन्नड, भोजपुरी ,बंगाली,
या हो असमिया, नेपाली ।
राष्ट्रभाषा को
दिलों जाँ से अपनाएंगे ,
भाई चारे को बढ़ाकर
विषमता को मिटायेंगे ,
हिन्दी को जन जन की भाषा बनायेंगे ।
#वाणी बरठाकुर ‘विभा’
परिचय:श्रीमती वाणी बरठाकुर का साहित्यिक उपनाम-विभा है। आपका जन्म-११ फरवरी और जन्म स्थान-तेजपुर(असम) है। वर्तमान में शहर तेजपुर(शोणितपुर,असम) में ही रहती हैं। असम राज्य की श्रीमती बरठाकुर की शिक्षा-स्नातकोत्तर अध्ययनरत (हिन्दी),प्रवीण (हिंदी) और रत्न (चित्रकला)है। आपका कार्यक्षेत्र-तेजपुर ही है। लेखन विधा-लेख, लघुकथा,बाल कहानी,साक्षात्कार, एकांकी आदि हैं। काव्य में अतुकांत- तुकांत,वर्ण पिरामिड, हाइकु, सायली और छंद में कुछ प्रयास करती हैं। प्रकाशन में आपके खाते में काव्य साझा संग्रह-वृन्दा ,आतुर शब्द,पूर्वोत्तर के काव्य यात्रा और कुञ्ज निनाद हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिका में सक्रियता से आती रहती हैं। एक पुस्तक-मनर जयेइ जय’ भी आ चुकी है। आपको सम्मान-सारस्वत सम्मान(कलकत्ता),सृजन सम्मान ( तेजपुर), महाराज डाॅ.कृष्ण जैन स्मृति सम्मान (शिलांग)सहित सरस्वती सम्मान (दिल्ली )आदि हासिल है। आपके लेखन का उद्देश्य-एक भाषा के लोग दूसरे भाषा तथा संस्कृति को जानें,पहचान बढ़े और इसी से भारतवर्ष के लोगों के बीच एकता बनाए रखना है।
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Wed Sep 12 , 2018
भूख तुम कुछ भी हो कविता नहीं हो/ कहानी,ग्रंथ,निबंध भी नहीं; सब भोथरे है तुम्हारे आगे, बदलती रही है प्रासंगिकता इनकी समय के साथ / तुम नहीं बदली तुम्हारा होना ही प्रमाण है, तुम्हारी अमरता का सदियों से विचरती रही तन मन धन के वास्ते कभी “मधु” के चावल […]