खड़ा रहूँगा अविचल होकर संकट के तूफानों में ,
डटकर बना रहूँगा सदैव मुसीबत के मैदानों में ।
राह में ऐसा बहुत मिलेगा,जो मुझे गिराना चाहेगा ,
देखकर मेरा कर्म और मेहनत नतमस्तक हो जायेगा ।
सबकुछ करके भी भले,मैं न जाना जाऊँगा,
पर अपने जीवन में, मैं हार नहीं मानूँगा ।
शौक मुझे मैं भी धरती का वीर पुत्र कहलाउँ ,
भारत माँ के लिए रहूँ या तिरंगे में लिपटा जाऊँ ।
सरहद पर मुझे भी जाकर दुश्मन से टकराना है,
कितनी शक्ति है इस मिट्टी में उसको यही बताना है ।
जबतक तन में सांस रहेगी दुश्मन को ललकारूँगा ,
वादा है मेरा हर वक्त रहेगा , मैं हार नहीं मानूँगा ।
मरणशील मानव का जीवन, दुखों से भरी कहानी है ,
जो दुश्मन को न ललकारे वो कैसी जिन्दगानी है ।
जो देश की सेवा करते-करते शहीद बन घर आते हैं,
मिलकर मनुज के साथ देव भी पुष्प उनपर बरसातें हैं ।
मुझे तो ये मालूम नहीं, मैं देश के काम कब आऊँगा ,
जो भी हो मेरे जीवन में, पर मैं हार नहीं मानूँगा ।
स्वर्ग,अमरत्व मिल जाता जब कफ़न तिरंगा होता है,
वीर शहीदों के यादों में सब मिलकर जब रोता है ।
धर्मनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ बन जीवन मुझे बिताना है,
माँ भारती का मैं बेटा हूँ अपने कर्मों से मुझे दिखाना है ।
करके प्राण न्योछावर मैं, फिर से लौटकर आऊँगा ,
दुनिया के इस कठिनाई से, मैं हार नहीं मानूँगा ।