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फ़िज़ा में चमकता सितारा न देखा
कभी दर्द उसने हमारा न देखा
सभी काटते है यहाँ पे शज़र को
तभी अब बशर में किनारा न देखा
तेरा क्यों बुराई से होगा भला अब
भलाई से हमने गुज़ारा न देखा
गुमाँ भाईचारे का सबको यहाँ था
यूं पहले सरीखा नज़ारा न देखा
रिहा आँखों से जबसे हमने किया तो
गया छोड़कर अब दुबारा न देखा
-आकिब जावेद
बाँदा, उत्तर प्रदेश
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