मेरी राखी  

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garima sinh
नम आंखों से तुझे दुआ दूँ
भईया कैसे तुझे भुला दूँ
ये राखी जब भी आती है
आँखे मेरी भर जाती है
फिर भी मन को समझाती हूँ
रोते रोते मुस्काती हूँ
याद तुम्हारी जब आती है
 दिल को कितना तड़पाती है
रोली तिलक लगाऊ कैसे
दूर बहुत हूँ आऊँ कैसे
खुद ही राखी हाँथ बाँधना
मेरी तुम ना राह ताकना
मैं शायद आ भी ना पाउँ
कैसे मन की पीर सुनाऊँ
दूर हूँ मैं मजबूर बहुत हूँ
तेरी खुशियों में ही खुश हूँ
खुशियों से घर तेरा भर जाए
गम कोई तुझे छू भी ना पाए
दूर भले मुझसे तू रहना
भूलना मत हूँ तेरी बहना
रहे धागों से सजी कलाई
भईया तुझको बहुत बधाई
#गरिमा सिंह
परिचय- 
नाम-  गरिमा अनिरुद्ध सिंह
साहित्यिक उपनाम-मधुरिमा
राज्य-गुजरात
शहर-सूरत
शिक्षा- एम ए प्राचीन इतिहास
कार्यक्षेत्र-शिक्षण
विधा – हास्य ,वीर रस ,शृंगार

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