अभी रात शेष है

1
0 0
Read Time3 Minute, 29 Second
vedprakash lamba
पुन: स्मरण करें आज
कैसे देश श्मशान हुआ था
पंख काटकर सोन-चिरैया के
स्वतंत्रता का गान हुआ था
बलिदानी शव बने थे सीढ़ी
लगाम थामना आसान हुआ था
सूरज उगते बदला नहीं दिनांक
बीच रात स्वामी गुणगान हुआ था
पुन: स्मरण करें आज . . . . .
नर्म गद्दों पर भारत की खोज उधर
इधर आकाश चूमता लाशों का अंबार
लाठी गोली फांसी माँ के सपूतों को
गोलमेज़ पर बैठे वार्ताकार यार
घर छिनने लुटने की खुशी मनाएं वो
नहीं धरती से जिनका सरोकार
काला पानी की कंदराओं में क़ैद भारत
हंसता इंडिया निभा रहा है भाईचार
पुन: स्मरण करें आज . . . . .
स्तन कटे माताओं-बहनों के
युवती बाला बालिका करतीं चीत्कार
धरती से उखड़ गए धरती के लाल
व्यर्थ रही गूँजती चीख-पुकार
और यह अंत नहीं था नासूर का
फैलता अंग-अंग धरता स्वआधार
निर्लज्ज हत्यारिन कानी यह सत्ता
बापू चाचा दोनों हुए सवार
पुन: स्मरण करें आज . . . . .
जब जेहलम का रंग लाल हुआ
छिन गया गुरु का ननकाना
ढाकेश्वरी पुत्रों के रक्त से नहा गई
रामसुत का लवपुर हो गया बेगाना
दुर्जनों को आँच लगी जब लगने
खिलाफती खेल खेल गया मनमाना
कुत्सित अँधी वासना का कीड़ा
सब सत्ताधीशों का जाना-पहचाना
पुन: स्मरण करें आज . . . . .
आग लगी रावी चिनाब के पानी में
बुझी नहीं अभी है जल रही
भूखी-प्यासी जनता बेचारी
वादों के अंगारों पर चल रही
अभी रात शेष है अंधियारी
यह बात हवा ने कल कही
यह जो दिख रहा प्रकाश है
सपनों की चिता है जल रही
पुन: स्मरण करें आज . . . . .
चमड़ी का रंग बदला सत्ताधीशों का
धरा तप रही अभी कैसे चरण धरें
विश्वगुरु को लांछित कर रही
पामारों की रीति-नीति का वरण करें
हम दास कभी थे औरों के
इसी कारण पुन:-पुन: स्मरण करें
विषैली  मन:स्थिति जो दासता की
सबसे पहले इसका मरण करें
पुनः स्मरण करें आज . . . . .
भाषा-भूषा सब स्वदेशी हो
माँ भारती के गीत गाएं हम
हिंदी हैं हम वर्ण कर्मानुसार
सागर की लहरों-से मिल जाएं हम
जो कट गए जो बंट गए
वो सब वापिस लौटाएं हम
न कुरेदें रिसते ज़ख़्मों को
राम का राजतिलक-दिवस मनाएं हम . . . !
पुन: स्मरण करें आज . . . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
परिचय: वेदप्रकाश लाम्बा
जन्म तिथि : तेईस अक्टूबर उन्नीस सौ अड़तालीस
जन्म स्थान : दिल्ली
अधिकांश लेखन पंजाबी भाषा में
पहली कविता का प्रकाशन : उन्नीस सौ उनहत्तर में
पहली कहानी उन्नीस सौ बहत्तर में ‘मोमबत्ती’ शीर्षक से पंजाबी भाषा में प्रकाशित
उसी वर्ष वही कहानी आकाशवाणी जलंधर से प्रसारित

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

One thought on “अभी रात शेष है

  1. अभी के युवा वर्ग को इस बात का एहसास नहीं है कि सत्ता हासिल करने के लिए किस मुकाम से गुजरना पड़ा था देशवासियों को। उन को तो यह सिर्फ कहानी ही लगती होगी।लेकिन आप की कविता में उस समय का मार्मिक चित्रण खींचा गया है।पढ़ कर शोक सतब्द हो जाता है इंसान। सत्ता प्राप्ति की कोई उमंग नहीं उठती अंदर से।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

कांग्रेस को फिर ‘असेट’ क्यों लगने  लगे हैं मणिशंकर ?

Mon Aug 20 , 2018
  क्या कांग्रेस का खोया राजनीतिक आत्मविश्वास लौटने  लगा है? क्या दो मीडिया संस्थानों के हालिया चुनावी सर्वे ने उसे मुगालते में ला दिया है? या फिर कांग्रेस को लगने लगा है कि मोदी सरकार के दिन जल्द ही लदने वाले हैं? ये तमाम सवाल इसलिए क्योंकि पिछले कई चुनावों […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।