दिन के हलक में…

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ankur

दिन के हलक में,
अटक जाता है अक्सर
शाम का कोर..
जो खाता है वो,
उदासी की साग से।

लाल सूरज की पुरी,
फिर थपथपाती है उसकी,
काल माँ पीठ..
पिला देती है,
कुछ अश्कों का पानी
और खिला देती है
इक ख्वाब के चाँद का
सफेद-सा बताशा।

यूँ कोर उतर जाता है,
हलक से नीचे
रात के पेट में।
दिन के हलक में
यूँ अटक जाता है
शाम का कोर…।

                                                                                        #अंकुर नाविक

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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