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ये दर्द तो दो घड़ी है,गुजर जाएगा
बारिश का पानी है, गुजर जाएगा
दिल को अपना हमराज़ बना लो
फिर जिधर कहोगे ,उधर जाएगा
जिनकी ठोकरों में ख़ाकनशीं है
वो कदम फिर दर-ब-दर जाएगा
मेरी नज़्मों की औकात जानने में
तुम सब का खूने-जिगर जाएगा
बदन छिल गई है ज़मीन की अब
पोशीदा करता कोई शज़र जाएगा
सलिल सरोजनई दिल्ली
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