0
0
Read Time44 Second
वे जब होते हैं
प्रसन्न या अति प्रसन्न , तो
लगता है जैसे –
रख देंगे लाकर , कदमों में आपके
आसमाँ भी
और जब होते हैं अप्रसन्न
तो लगता है जैसे –
नहीं छोड़ेंगे
पाताल से भी कहीँ
नीचे दबाकर ।
असंयमित सी है यदि
हमारी यह फितरत
तो –
जरूरत है इसे बदलने की
अन्यथा
देर नहीं लगती फिर
रिश्तों के टूटने में।
संग रहकर भी हम
हो जाते हैं विवश
जीने को एकाकी जीवन ।
होता है यदि ऐसा तो
बदल लेना चाहिए
फितरत अपनी
इससे
बच जाएंगे रिश्ते भी
और
बच जाएगी जिंदगी भी।
# देवेन्द्र सोनी , इटारसी
Post Views:
465