Read Time1 Minute, 41 Second
मोमबत्तिजलाकर दो दिन
मौन मत हो जाओ तुम
मैं जल रही हु हर घर मे
अब तो आवाज उठाओ तुम
बात अब नही बनेगी
खाली कोरी बातो से
बनकर सखा ,द्रोपदी का
अबतो चीर बढाओ तुम
बहुत हो चुकी नारे बाजी
दिया कोई जलाओ तुम
कहि किसी नारी को अपनी
अस्मिता दिलवाओ तुम
थामो हाथ किसी बहना का
सिर्फ रखी ही न बन्धवाओ तुम
लड़ सके अपने हक की खतिर
पिता ,शिक्षा ऐसी दिलाओ तुम
साहस भरो पत्नी में अपनी
उठा सर जीना सिखलाओ तुम
बात अब नही बनेगी
अनशन और प्रतिकारों से
बनकर राम सरीखे पालक
सीता-वनवास छुड़ाओ तुम
प्रचण्ड प्रलय रच दो शिवा हित
अब तो शिव बन जाओ तुम।
#विजयलक्ष्मी जांगिड़
परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में रहती हैं और पेशे से हिन्दी भाषा की शिक्षिका हैं। कैनवास पर बिखरे रंग आपकी प्रकाशित पुस्तक है। राजस्थान के अनेक समाचार पत्रों में आपके आलेख प्रकाशित होते रहते हैं। गत ४ वर्ष से आपकी कहानियां भी प्रकाशित हो रही है। एक प्रकाशन की दो पुस्तकों में ४ कविताओं को सचित्र स्थान मिलना आपकी उपलब्धि है। आपकी यही अभिलाषा है कि,लेखनी से हिन्दी को और बढ़ावा मिले।
Post Views:
569
Sat Jul 7 , 2018
भावों से जन्मे जो है सिर्फ़ वही कविता, जो सोच के लिखता वो लिख सकता नहीं कविता! ००० जब-जब भी क़लम लेकर मैं बैठता हुँ लिखने, तब-तब ऐसा लगता ख़ुद बोल रही कविता! ००० डूबे हैं अहं में जो पग से लेकर सिर तक, बोलो,उनके दिल में कब-कब है बही […]