आखिर किसकी तलाश है तुम्हे
धन की?
जो क्षणिक है,
जो लालच, अहंकार पैदा करता है,
जो अपनों से अलग करता है,
जो भौतिक जरूरतें ही पूरा कर सकता है।
सम्मान की ?
उस झूठे सम्मान की चाह,
जो अल्पकालिक होता है,
जो भय से भी मिलता है,
जो निहित स्वार्थ से मिलता है,
ऐश्वर्य की?
जिसके लिए तू दिन- रात एक कर देता है
जो मात्र दिखावा है,
जो सदा नहीं रह सकता।
जहां पहुँचकर तू ईश को भी भूलता है,
तन के सौंदर्य की?
जो समय के साथ नष्ट हो जाता है,
जिससे अहं आ जाता है,
जो मात्र बाह्य सुंदरता है,
जो क्षण भंगुर है।
सेहत की ?
जिसकी तुम्हें प्रत्यक्ष चिंता नहीं ,
दिखावा में डूबे हो,
जिसके लिए तुम कुछ कर ही नहीं रहे हो,
सिर्फ हर चीज में जहर घोल रहे हो ।
जीवन साथी की ?
जिसमें विश्वाश नहीं ढूंढ पाते हो,
चंद्र दिन में जिससे मन भर जाता है
जिसमें कमियां ढूंढता फिरता हो,
जिसे बाधा समझने लगता हो।
प्रेम की ?
जिसके गहराइयों का तुम्हे थाह नहीं,
जिसकी व्यापकता से तुम परिचित नहीं,
जिसके भाव की तुम्हे समझ नहीं,
जिसकी यथार्थता का ज्ञान नहीं ।
ईश्वर की ?
जिनसे मिलकर भी जल्दी ही तुम्हारा मन भर जायेगा,
ईर्ष्या-द्वेष, निंदा दूसरों का करोगे उनसे,
क्योकि तू लालच,ईर्ष्या-द्वेष,नफरत का पुतला है,
तू अपने स्वार्थ की ही बात करेगा सदा उनसे।
सुख-शांति की ?
सुख-शांति के लिए त्याग चाहिये,
छोड़ना पड़ेगा अपनी भौतिकता,
छोड़ना पड़ेगा ईर्ष्या-द्वेष,लालच,निंदा
मन को परिष्कृत करना पड़ेगा।
फिर !!!!
आखिर किसकी तलाश है तुम्हे।
नाम-पारस नाथ जायसवाल
साहित्यिक उपनाम – सरल
पिता-स्व0 श्री चंदेले
माता -स्व0 श्रीमती सरस्वती
वर्तमान व स्थाई पता-
ग्राम – सोहाँस
राज्य – उत्तर प्रदेश
शिक्षा – कला स्नातक , बीटीसी ,बीएड।
कार्यक्षेत्र – शिक्षक (बेसिक शिक्षा)
विधा -गद्य, गीत, छंदमुक्त,कविता ।
अन्य उपलब्धियां – समाचारपत्र ‘दैनिक वर्तमान अंकुर ‘ में कुछ कविताएं प्रकाशित ।
लेखन उद्देश्य – स्वानुभव को कविता के माध्यम से जन जन तक पहुचाना , हिंदी साहित्य में अपना अंशदान करना एवं आत्म संतुष्टि हेतु लेखन ।