कागजों के ढेर लग गए हैं,
स्याह हरफ़ों से रंगे कागज के।
कागज भी हो गए अब काले,
स्त्री पीड़ा की दास्तान कहते।
चहुंओर घूम रहे हवस के भेड़िए,
नारी की आबरु को लूटने।
क्या अर्थ स्त्री सशक्तिकरण का,
स्वतंत्रता दफन है कानूनी पन्नों में।
पीड़िता मजबूर झूठे गवाहदारों से,
अखबार-चैनल भरे दुष्कर्म की खबरों से।
अब बेनकाब करो अपराधियों के चेहरे,
सरेआम सिर कलम करें ऐसे दुष्टों के।
#गोपाल कौशल
परिचय : गोपाल कौशल नागदा जिला धार (मध्यप्रदेश) में रहते हैं और रोज एक नई कविता लिखने की आदत बना रखी है।
शानदार आदत