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जिस शाख़ से हैं हम
आकाश की ऊँचाई पर
उड़नें की ख़ातिर
उस शाख़ से जुदा होते
लोगों को देखा है
अपनों से जुदा हुए
लोगों की याद में
इस शाख़ को
रोते देखा है
फिर भी फ़क़त मैं जुडा हूँ
उस शाख़ से
बाकी,
उस शाख़ से जुदा होते
लोगों को देखा है
#डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
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