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एक मित्र आया था
उदास चेहरे के साथ
रुपया मांगने
विश्वास पर
हमने रुपया दे दिया
आठ महीने बीत गए
इसी इंतेजार में
आज देगा या कल
अब जरुरत पड़ी मुझे
रुपया की तो
न कॉल उठाता है
न ही कॉल करता है
सोच – सोच कर मन
व्याकुल हो जाता है
मित्रता की पहचान
अब दगाबाज होती जा रही है
विश्वास अब न रहा
मित्र पर
सब धोखा दे देते हैं ।
नाम- नौशाद वारसीपता- समस्तीपुर(बिहार)शिक्षा – अन्तर स्नातक M.A.( राजनीती शास्त्र)शौक – राजनीती, समाजसेवा, साहित्यिक पठन- पठान ।लेखन विद्दा – कविता , गजल, मुक्तक,कहानी, शायरी, दोहे ।
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सादर आभार
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