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बहाकर खूब पसीना अब,
भाग्य ख़ुद लिखना होगा ।
अपने मज़बूत इरादों से ही,
इस रण में टिकना होगा ।।
चुपचाप बैठकर ऐसे ही,
परिश्रम भी करना होगा ।
अपने हाथों से खुद अपनी,
तक़दीर को लिखना होगा।।
भाग्य तेरा मोहताज नहीं ,
हाथों की लकीरों का ।
इंसान तो मालिक है,
ख़ुद अपनी तकदीरों का ।।
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।
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Fri Jul 6 , 2018
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