प्रेम

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pdma mishra

पूजित था जीवन में ,मानव का प्रेम जहाँ ,
भक्ति ,प्रेम ,सेवा के वाहक कबीर थे .
गाँधी की मानवता सत्य और अहिंसा थी ,
सहज पथ प्रदर्शक थे ,लाखों की भीड़ में ,
दोनों ही संत पुरुष ,युग द्रष्टा कहलाये ,
जीवन उत्सर्ग किया जन पीर में।.

‘विचलित है न्याय ,सत्य आज भी पराजित है ,
पीड़ित मानवता के शूल चुभे पांवों को ,
आज भी एक गाँधी कबीर की जरूरत है ,
भक्ति और नीति में प्रेम का समन्वय कर ,
कौन पन्थ दिखलाए ?
जन जन का दर्द फिर पुकारता है बार बार ,
आओ फिर एक बार ,आओ फिर एक बार ”

matruadmin

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One thought on “प्रेम

  1. पद्मा मिश्र जी की कविता” प्रेम” आज के युग की आवश्यकता है ।अति सुंदर ।पद्मा जी को हार्दिक बधाई व् शुभकामनाएं ।
    डॉ आशा गुप्ता “श्रेया”

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