मांझी से उम्मीद लगाना छोड़ दो

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paras nathth

jayswal

लाख ग़मों का दौर आए तो भी,
सबके आगे आँसू बहाना छोड़ दो।
लोग तरस खाएं तुम पर,   तो खाने दो।
मगर खुद पर तरस खाना छोड़ दो ।
बुरे दौर में खुद को संभाल के रखो,
हिम्मत हार के भटक जाना छोड़ दो ।
खुद के मेहनत पर यकीन रखो,
दूसरों के सामने हाथ फैलाना छोड़ दो।
अपना कीमत खुद समझो तुम,
दूसरे से कीमत लगवाना छोड़ दो।
अपना फ़र्ज निभाना सीखो,
किसी के इशारे पे दौड़ लगाना छोड़ दो ।
कोई तुम्हे समझे  न ,तो न सही।
खुद जिंदादिली का मातम मनाना छोड़ दो।
ये जमाना तुम्हे बेचारा बना डालेगा ।
या सबको अपना लाचारी बताना छोड़ दो।
जिन्दगी की दरिया तैरकर पार करो।
मांझी से उम्मीद लगाना छोड़ दो।

                 नाम-पारस नाथ जायसवाल

साहित्यिक उपनाम – सरल
पिता-स्व0 श्री चंदेले
माता -स्व0 श्रीमती सरस्वती
वर्तमान व स्थाई पता-
 ग्राम – सोहाँस
राज्य – उत्तर प्रदेश
शिक्षा – कला स्नातक , बीटीसी  ,बीएड।
कार्यक्षेत्र – शिक्षक (बेसिक शिक्षा)
विधा -गद्य, गीत, छंदमुक्त,कविता ।
 अन्य उपलब्धियां –  समाचारपत्र ‘दैनिक वर्तमान अंकुर ‘  में कुछ कविताएं प्रकाशित ।
लेखन उद्देश्य – स्वानुभव को कविता के माध्यम से जन जन तक पहुचाना , हिंदी साहित्य में अपना अंशदान करना एवं आत्म संतुष्टि हेतु लेखन ।

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