हम महक बिखेरते गहरे अर्थों में निहित हैं, हमें मात्र शब्दों में ढूंढ न पाओगे कभी, अहसास क्षितिज के ठीक…. बीचो-बीच बसते हैं हमारे मानवतावादी प्राण। मिलते,हिलते,खिलते, पलते ,जलते,उखड़ते नैन,मन,तन,सघन। अफ़साने,अनजाने, पहचाने सजे हंसते टूटते बिखरते, सिमटते,झकझोरते स्वयं को निचोड़ते…. मन बुनता आठो पहर.. अधबुने स्वेटर से ख़्वाब जिसके फंदे […]