जब कभी जाता हूँ श्मसान, दिखते हैं दिन में कुछ अपने। कुछ बहुत ख़ास से लोग, कुछ प्यारे नाते-रिश्तेदार, कुछ मेरे पुराने दोस्त-यार, पर नज़र आता नहीं वर्तमान। चिता से उठती हुई लौ-लपटें, चिता में डलता हुआ घी-कपूर, और चंदन की लकड़ी के टुकड़े, सब बताते हैं अनेकता में एकता। […]