आओ रे, कर्म की आँधियाँ चलाओ रे.. पत्थर तोड़ते,सड़क बनाते ऊँचे ऊँचे महल बनाते फिर भी रहते बेघर हम, आकाश के नीचे लेते दम। कर्म ही हमारा जीवन है, परिश्रम ही हमारा धन है।। बोझा ढोते,ठेला चलाते, फिर भी रूखा-सूखा खाते.. दर्द के आँसू पीते हैं हम, अभावों में जीते […]