स्वतंत्र-संस्थानों के कानून- वारांगणानों के हाव भाव- दोनों में है कितनी समानता- कितना मिलाव। चाँदी की चमक के माप पर बदलते भाव,वारा-कन्याओं के- मालिकों के लाभ-हानि के माप पर, बदलते कानून-स्वतंत्र संस्थाओं के। ज्यों हो कोई संगीत कुर्सी का खेल- रुक जाता है संगीत, बजते-बजते। खिलाड़ी हो जाते विवश- चलते-चलते। […]
annapurna
ओ मेरे प्रिय विरोधी, चिर प्रगति-पथ अवरोधी। तुझे नमस्कार है- शत-सहस्त्र प्यार ही प्यार है। क्योंकि, तेरे विरोध की चिंगारियाँ हीं- मेरी महत्वाकांक्षाओं के यज्ञ की- पवित्र रश्मियाँ हैं, आलोक में जिनके- मेरी इच्छाएँ चढ़ती हैं- प्रगति-पथ की सीढ़ियाँ। कैसे कह दूँ मैं- तुम मेरे विरोधी हो… चिर प्रगति-पथ अवरोधी…? […]