भ्रमर कुमुदनी पर करे है चुम्बन, यौवन है बादल,इठलाया सावन….! देखो झूम के बदरा बरसे है, तू काहे तड़पाये ओ मोरा साजन….! अधरों की लाली,अँखियों का कजरा, धूल गए सारे,तू आया न सजना….! कैसे घर जाऊं ,भेद खोले है मोरा, ये भीगा तन,और महका सा गजरा..! निशदिन तोरी राह तकूँ […]
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ज़िंदगी के रंग मंच पर आदमी है सिर्फ़ एक कठपुतली । कठपुतली अपनी अदाकारी में कितने भी रंग भर ले आख़िर; वह पहचान ही ली जाती है, कि वह मात्र एक कठपुतली है । ऐसे ही आदमी चेहरे पर कितने ही झूठे-सच्चे रंग भरे अंत में, रंगीन चेहरे के पीछे असली चेहरा पहचान ही लिया जाता है | #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 388
जिस सहर पे यकीं था वो ख़ुशगवार न हुयी देखो ये कैसी अदा है नसीब की समझा था जिसे बेकार, वो बेकार न हुयी मांगी थी जब तड़प रूह बेक़रार न हुयी कहूँ अब क्या किसी से देखकर माल-ओ-ज़र भी मिरि चाहतें तलबगार न हुयीं सोचा था जिन्हे अपना वो साँसें मददगार न हुयीं है अजीब अशआर क़ुदरत की भूल से छोड़ा था जिसे हमने वो निगाहें शिकबागार न हुयीं #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 576