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भ्रमर कुमुदनी पर करे है चुम्बन,
यौवन है बादल,इठलाया सावन….!
देखो झूम के बदरा बरसे है,
तू काहे तड़पाये ओ मोरा साजन….!
अधरों की लाली,अँखियों का कजरा,
धूल गए सारे,तू आया न सजना….!
कैसे घर जाऊं ,भेद खोले है मोरा,
ये भीगा तन,और महका सा गजरा..!
निशदिन तोरी राह तकूँ मैं,
अब आ भी जा बैरी पिया…!
नैना तरसे हृदय है तड़पे,
काहे जलाये तू मोरा जिया…!!
#निशारावल
छत्तीसगढ़
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