खिल रहे कनक से अमलतास, मस्ती में महुआ महक उठा। अमराई में बोर महकते वन, का खग मंडल चहक उठा।। कोपल पात नवल से आए, तरु चंचल मन बहक उठा। कुसुम पलाश के खिले-खिले कानन का आंगन दहक उठा।। नव नूतन श्रृंगार किए प्रकृति, का मुख मंडल दमक उठा। बसंत […]
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है नहीं सिर्फ नदी ब्रह्मपुत्र, यह ब्रह्म का पुत्र है है इसलिए यह एक नद्य, यह है दर्शन समन्वय का। हुआ इसके तटों पर, कई संस्कृतियों व सभ्यताओं का मिलन। आर्य-अनार्य,मंगोल-तिब्बती, बर्मी-द्रविड़,मुगल-आहोम के मिलन और टकराहट का, गवाह है यह ब्रह्मपुत्र। है इसकी कई उपनदियाँ, सुवनश्री,तिस्ता,तोर्सा लोहित,बराक,धनश्री। है महाबाहु यह […]