में जानती हूँ मैं तुममें ही हूँ कहीं, हाँ मग़र, मुखर नहीं। अंतर में गहरे दबी रहती हैं ज्यों जड़ें और गहरे और गहरे अतल में.. चुपचाप पोसती हैं अंतिम छोर को फिर भी एकाकार होकर भी अभेद्य होकर भी मुखर नहीं..। ———- #विजयलक्ष्मी जांगिड़ परिचय : विजयलक्ष्मी जांगिड़ जयपुर(राजस्थान)में […]
ए गुलमोहर,तुझे देखकर,यादें ताजा हो आई, तेरी वो तेरी नाजुक पंखुड़ी, यादें बचपन की ले आई। झुकी डालियों से अनुरक्ति,कैसे बयां करुं बचपन की, तेरी रक्तिम आभा से जुड़ गई,स्वर्णिम यादें जीवन की। सखियों संग हँसते-गाते,कितने अनजान ज़माने थे, वो नादानी कहती है,बचपन में हम कितने इतराते थे। यौवन की दहलीज न जाने कब लांघी,हमने सकुचाते शरमाते, जाने कब […]